मप्र के अब्दुल ताहिर 12 साल से स्पेशल चिल्ड्रेन के लिए चला रहे हैं स्कूल

भोपाल , 7 फरवरी | मध्य प्रदेश निवासी अब्दुल ताहिर एक सक्षम कारोबारी हैं। इसके साथ साथ ताहिर स्पेशल चिल्ड्रेन (बच्चों) के लिए बीते 12 सालों से एक स्कूल चला रहे हैं। स्कूल में किसी भी बच्चों से कोई फीस नहीं ली जाती है। ताहिर के अनुसार, दुनिया में तुम क्या काम करके जाओगे वो मायने रखता है। दरअसल ताहिर ने अपने पिता से प्रेरित होकर ये स्कूल चलाने का फैसला किया। अब्दुल ताहिर के पिता मध्यप्रदेश में एक सरकारी पद पर कार्यरत थे, वहीं इनकी मां गृहणी हैं, लेकिन दोनों को ही पढ़ाई में काफी दिलचस्पी थी। जिसकी वजह से ताहिर के पिता समाज सेवी का काम भी किया करते थे।

खासतौर पर पढ़ाई के लिए बच्चों को जागरूक करना और पढ़ाई के लिए गरीब परिवार की मदद भी किया करते थे।

पिता के रिटायर्ड होने के बाद मध्य प्रदेश के गांधीनगर में गरीब बच्चों के लिए एक प्राइमरी स्कूल खोला गया, जिसमें आस पास की बस्तियों के बच्चे आकर पढ़ा करते थे।

अब्दुल ताहिर ने आईएएनएस को बताया, मेरे पिता से मुझे लोगों की मदद करने का जुनून चढ़ा, मेरे पिता जिस तरह गरीबों की मदद किया करते थे, हमें उसकी आदत पड़ गई। वो आदत अभी भी बरकरार है।

ताहिर द्वारा चलाया जा रहा स्कूल पहले सिर्फ प्राइमरी स्कूल था, लेकिन 2008 में इसे स्पेशल बच्चों को समर्पित कर दिया, जिसका नाम ‘जस्टिस तन्खा मैमोरियल इंस्टिट्यूट फॉर स्पेशल चिलड्रन’ है। इसे कांग्रेस नेता विवेक तन्खा के पिता के नाम पर रखा गया है।

इस स्कूल का संचालन एक सोसाइटी (एनजीओ) करता है जिसका नाम ‘सम्पूर्ण’ है। इस सोसाइटी में ताहिर के परिवार के लोग एवं मित्र जुड़े हुए हैं। यह आपस में ही इस स्कूल के लिए मदद करते रहते हैं।

गांधीनगर में बस्तियां होने के कारण गरीब तबके के लोग ज्यादा थे, इन बस्तियों में स्पेशल चिल्ड्रेन की संख्या भी थी। अब्दुल ताहिर के पिता देखा करते थे कि स्पेशल चिल्ड्रेन के माता पिता उन्हें घरों में बंद करके काम पर चले जाते थे। किसी को जंजीर से तो किसी को कपड़ों से बांध दिया जाता था। जिसके बाद 2008 में ताहिर के पिता ने फैसला किया कि इस स्कूल को स्पेशल चिल्ड्रेन के लिए कर दिया जाए।

अब्दुल ताहिर ने आईएएनएस को बताया कि, हम लोगों ने गौर किया कि इस इलाके में स्पेशल चाइल्ड बच्चों के लिए कोई सुविधा नहीं है और जो सुविधा है वो काफी महंगी है। आर्थिक तंगी होने कारण वे परिवार बच्चों को इन स्कूलों में नहीं भेज सकते थे। इन्ही परिवारों को ध्यान में रखते हुए ये फैसला लिया गया।

अब्दुल ताहिर अपने पिता के नक्शे कदम पर आगे बढ़े और उन्होंने भी लोगों की मदद करनी शुरू की। वहीं वे अपने बच्चों को भी लोगों की मदद करने के लिए प्रेरित करते हैं।

बीते 12 सालों से ये स्कूल चल तो रहा है जिसका फायदा भी देखने को मिला है। ये जानकर हैरानी होगी कि अब तक कई बच्चे बिल्कुल ठीक हो चुके हैं। ठीक हुए बच्चे अब अपनी जिंदगी अपने तरीके से जी रहे हैं, साथ ही वह अब्दुल ताहिर और स्कूल के स्टाफ को शुक्रिया अदा भी करते हैं।

अब्दुल ताहिर ने बताया, खुशी होती है जब ऐसे बच्चे ठीक हो कर हमारे स्कूल से चेहरे पर मुस्कान लेकर जाते हैं और कुछ यादें छोड़ जाते हैं। हमारे स्कूल से कई बच्चे ठीक होकर गए हैं जो अपने-अपने तरीके से जिंदगी को आगे जी रहें हैं। कुछ तो नौकरियां भी कर रहे हैं।

जब उनसे पूछा गया कि आप स्कूल में आने वाले स्पेशल चिल्ड्रेन से पैसे क्यों नहीं लेते? इसपर जवाब देते हुए अब्दुल ताहिर ने कहा कि, हमारी आर्थिक स्थिति हमेशा ठीक रही, किसी चीज की समस्या नहीं आई। शुरूआत में थोड़ा सोचा लेकिन अल्लाह/भगवान ने साथ दिया और आज तक किसी से फंड नहीं लिया। 2008 से 8 बच्चों के साथ शुरूआत की थी लेकिन अब इन स्कूल में 100 से अधिक स्पेशल चिल्ड्रेन की देखभाल कर रहे हैं। बच्चों को घर से छोड़ना, लाना, एक वक्त का खाना, उनकी देखरेख, पढ़ाई सब हमही देखते हैं।

इस स्कूल में 11 लोगों का स्टाफ है, वहीं 7 से 8 क्लासरूम हैं। स्कूल में स्पेशल चाइल्ड्स के लिए 3 टीचर हैं। हमारे पास बच्चों के स्वास्थ्य की देखरेख के किये एक डॉक्टर भी हैं। सरकार की कोई योजना भी होती है, तो भी हम इनकी मदद कराते हैं।

ताहिर को अपनी सोसाइटी (संपूर्ण) के लिए 20 से अधिक अवार्ड भी मिल चुका है, जिसमें हिमाचल प्रदेश की गवर्नर ने भी इनके काम को सराहा है।

ताहिर ने एक स्पेशल चाइल्ड के बारे में जानकारी साझा करते हुए बताया कि, हमारे स्कूल में अर्सलान नामका एक ऐसा बच्चा था जिसकी उम्र ज्यादा थी, लेकिन शारीरिक और मानसिक रूप से बेहद कमजोर था। डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए थे लेकिन हमारे स्कूल में उसकी देखभाल की गई और मुझे खुशी है बताते हुए कि वह बच्चा आज लोगों को पहचानने लगा है और जीवित भी है।

इस बच्चे को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक बार एक कार्यक्रम में गोद में भी उठाया था।

उन्होंने आगे कहा कि, जो बच्चे यहां से ठीक हो गए हैं वह हमसे मुलाकात करते हैं और फोन पर बात भी करते हैं।